*विद्या भारती योजना एवं वैदिक गणित का महत्व*
आदरणीय अध्यक्ष महोदय, माननीय अतिथिगण, सम्मानित आचार्यगण, और मेरे प्रिय छात्र साथियो,
आज का यह अवसर मेरे लिए अत्यंत गौरव और आनंद का विषय है। हम सब यहाँ विद्या भारती की महान शिक्षा–योजना और विशेषतः गणित को सरल एवं रोचक बनाने वाले वैदिक गणित के महत्व पर चर्चा करने के लिए एकत्रित हुए हैं। यह विषय केवल गणित तक सीमित नहीं, बल्कि हमारी भारतीय संस्कृति और ज्ञान–परंपरा की गहराई से जुड़ा हुआ है।
*विद्या भारती की संगठनात्मक योजना*
विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान आज भारत के शिक्षा क्षेत्र में सबसे बड़ा सांस्कृतिक एवं राष्ट्र–निर्माण का आंदोलन है। इसका उद्देश्य केवल पढ़ना–लिखना सिखाना नहीं, बल्कि विद्यार्थियों को संस्कारयुक्त, राष्ट्रनिष्ठ और चरित्रवान बनाना है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के अंतर्गत ब्रज प्रांत, मेरठ प्रांत और उत्तराखंड प्रांत आते हैं। ब्रज प्रांत में शिक्षा को सुव्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए विद्या भारती की पाँच समितियाँ कार्यरत हैं:
*1. शिशु शिक्षा समिति –*
यह समिति बाल्यावस्था से ही बच्चों में संस्कार और मूल्य आधारित शिक्षा का बीजारोपण करती है।
*2. जन शिक्षा समिति –*
इसका उद्देश्य समाज के अंतिम व्यक्ति तक शिक्षा की पहुँच सुनिश्चित करना और शिक्षा को सर्वसुलभ बनाना है।
*3. भारतीय शिक्षा समिति (यूपी बोर्ड)*
– राज्य बोर्ड के अंतर्गत विद्यार्थियों को भारतीय दृष्टिकोण से समृद्ध शिक्षा प्रदान करती है।
*4. भारतीय शिक्षा समिति (सीबीएसई बोर्ड) –*
राष्ट्रीय स्तर की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए सीबीएसई पद्धति से संस्कारयुक्त शिक्षा देती है।
*5. भारतीय श्री विद्या परिषद*– यह विशेष रूप से बालिकाओं की शिक्षा एवं उनके सर्वांगीण विकास के लिए कार्यरत है।
इन पाँच समितियों के सामूहिक प्रयास से विद्या भारती ने यह सिद्ध किया है कि शिक्षा केवल पुस्तकों का ज्ञान नहीं, बल्कि चरित्र–निर्माण और राष्ट्र–निर्माण का सबसे बड़ा साधन है।
*गणित शिक्षण में चुनौतियाँ*
सभी जानते हैं कि गणित एक ऐसा विषय है जिसे विद्यार्थी अक्सर कठिन और नीरस मानते हैं। प्रश्नों की जटिलता और लम्बी प्रक्रियाएँ बच्चों को हतोत्साहित करती हैं। कई विद्यार्थी तो गणित के नाम से ही भयभीत हो जाते हैं।
परंतु सच्चाई यह है कि गणित ही वह विषय है जो हमें तर्कशक्ति, अनुशासन, समस्या–समाधान की क्षमता और निर्णय लेने की योग्यता प्रदान करता है। यदि गणित को सरल और रोचक ढंग से पढ़ाया जाए तो यही विषय विद्यार्थियों का प्रिय बन सकता है।
इसी उद्देश्य से विद्या भारती ने अपने विद्यालयों में वैदिक गणित को अपनाया और इसे कक्षा–कक्ष की शिक्षण प्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया।
*वैदिक गणित का उद्भव और प्रवर्तक*
वैदिक गणित के प्रवर्तक थे जगद्गुरु भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज। वे पुरी गोवर्धन पीठ के 143वें शंकराचार्य थे। उनका जन्म 1884 में हुआ और 1960 तक उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा के पुनरुत्थान में अद्भुत योगदान दिया।
उन्होंने वेदों और वेदांगों के गहन अध्ययन, साधना और अनुसंधान द्वारा गणित के सूत्रों और उपसूत्रों का पुनः अन्वेषण किया। उनका मानना था कि वेदों में निहित यह ज्ञान केवल गणना नहीं, बल्कि मनुष्य की चित्त–शक्ति और स्मरण–शक्ति को भी प्रबल करता है।
उनकी महान कृति *”Vedic Mathematics” (वैदिक गणित)* 1965 में प्रकाशित हुई, जिसने पूरी दुनिया को भारतीय गणितीय परंपरा से परिचित कराया।
*वैदिक गणित के सूत्र और उपसूत्र*
वैदिक गणित में कुल 16 मुख्य सूत्र और 13 उपसूत्र हैं। ये इतने व्यापक और सार्वत्रिक हैं कि अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति, त्रिकोणमिति, कलन और सांख्यिकी – सभी शाखाओं को सरल बना देते हैं।
सूत्र: निखिलं नवतश्चरमं दशतः – इसके द्वारा बड़ी संख्याओं का गुणन और घटाव पलभर में किया जा सकता है।
सूत्र: उर्ध्वतिर्यग्भ्याम् – किसी भी दो संख्याओं के गुणन का सार्वत्रिक सूत्र।
सूत्र: एकाधिकेन पूर्वेण – वर्ग एवं अन्य गणनाओं को सहजता से निकालने में सहायक।
उपसूत्र: अनुरूप्येण – अनुपात एवं भिन्न से संबंधित प्रश्नों को सरल करने का उपाय।
इन सूत्रों की विशेषता यह है कि ये जटिल प्रश्नों को बहुत ही कम चरणों में हल कर देते हैं।
वैदिक गणित के प्रयोग
भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज ने अपने प्रयोगों से यह सिद्ध किया । 1. मानसिक गणना की अद्भुत क्षमता विकसित होती है।
2. लम्बी–लम्बी प्रक्रियाएँ छोटे–छोटे सूत्रों से सरल हो जाती हैं।
3. विद्यार्थी गणित से डरते नहीं, बल्कि उसे खेल की तरह हल करने लगते हैं।
4. प्रतियोगी परीक्षाओं में समय बचाने का यह अनोखा साधन है।
5. इससे बच्चों में आत्मविश्वास, स्मरण–शक्ति और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बढ़ती है।
अखिल भारतीय स्तर पर प्रसार
विद्या भारती ने सबसे पहले अखिल भारतीय स्तर पर शिक्षक प्रशिक्षण शिविरों और छात्र कार्यशालाओं में वैदिक गणित को शामिल किया। धीरे–धीरे इसे विद्यालयों की कक्षा–कक्ष प्रणाली का हिस्सा बना दिया गया।
आज विद्या भारती के हजारों विद्यालयों में वैदिक गणित पढ़ाया जा रहा है और विद्यार्थी इसे अत्यधिक उत्साह से सीख रहे हैं।
कक्षा–कक्ष में वैदिक गणित की उपयोगिता
1. रोचकता – गणित अब कठिन नहीं लगता, विद्यार्थी खेल की तरह प्रश्न हल करते हैं।
2. समय की बचत – कठिन प्रश्न भी क्षणभर में हल हो जाते हैं।
3. त्रुटि की संभावना न्यूनतम – विधियाँ सरल होने से गलती की संभावना कम हो जाती है।
4. मानसिक विकास – विद्यार्थी बिना कागज–कलम के गणना करने लगते हैं।
5. व्यक्तित्व निर्माण – आत्मविश्वास और निर्णय क्षमता में वृद्धि होती है।
आधुनिक संदर्भ में वैदिक गणित
आज की प्रतिस्पर्धात्मक दुनिया में वैदिक गणित केवल विद्यालयों तक सीमित नहीं है। यह इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी, बैंकिंग, प्रबंधन और शोध के क्षेत्रों में भी अत्यंत उपयोगी है। विश्वभर के विश्वविद्यालय अब वैदिक गणित को गंभीरता से पढ़ा रहे हैं।
यह गर्व की बात है कि जो ज्ञान हमारे ऋषियों की धरोहर था, वह आज विश्व–मानवता के लिए उपयोगी सिद्ध हो रहा है।

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