– बालकिशन अग्रवाल, शिक्षाविद एवं समाजसेवी, स्वतंत्र विचारक
विश्व राजनीति और वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत का स्थान बीते दशक में जिस प्रकार मजबूत हुआ है, वह न केवल भारतीय जनमानस के लिए गर्व का विषय है बल्कि समूचे विश्व समुदाय के लिए एक संदेश भी है कि भारत अब मात्र उपभोक्ता देश नहीं, बल्कि निर्णायक भूमिका निभाने वाला नेतृत्वकारी राष्ट्र है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने अपनी सामर्थ्य को जिस प्रकार संगठित किया है, वह केवल चुनावी भाषणों की बात नहीं बल्कि विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त सच्चाई बन चुकी है।
हाल ही में अमेरिका द्वारा भारत पर नए टैरिफ लगाने और व्यापारिक बाधाएँ खड़ी करने की कोशिश इस उभरती शक्ति के लिए एक बड़ी परीक्षा की तरह सामने आई है। अमेरिका स्वयं को मुक्त व्यापार और उदारवाद का पुरोधा मानता रहा है, किंतु जब कोई राष्ट्र उसके आर्थिक वर्चस्व को चुनौती देता है, तो वह अपनी सुरक्षा कवच के रूप में टैरिफ और व्यापारिक प्रतिबंधों का सहारा लेता है। यही स्थिति आज भारत-अमेरिका संबंधों में देखने को मिल रही है।
भारत की बदलती आर्थिक तस्वीर
पिछले एक दशक में भारत ने आर्थिक विकास दर, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और औद्योगिक उत्पादन के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। डिजिटल क्रांति, आधारभूत संरचना का विस्तार, और “मेक इन इंडिया” जैसे अभियानों ने भारत की छवि को बदल दिया है। आज भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और अगले दशक में तीसरे स्थान तक पहुँचने की राह पर है।
प्रधानमंत्री मोदी ने बार-बार यह संदेश दिया है कि भारत अपनी नीतियाँ किसी दबाव में नहीं बल्कि राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखकर तय करेगा। यही कारण है कि भारत ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी अहमियत को स्थापित किया है। अमेरिका भली-भांति जानता है कि भारत केवल एक बड़ा बाजार ही नहीं बल्कि एक निर्णायक उत्पादन केंद्र भी बन रहा है।
अमेरिकी टैरिफ का उद्देश्य
अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ का मूल उद्देश्य भारत की बढ़ती प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति को नियंत्रित करना है। भारत का फार्मास्युटिकल, आईटी, स्टील और कृषि क्षेत्र अमेरिकी कंपनियों के लिए चुनौती बने हैं। अमेरिकी प्रशासन यह चाहता है कि भारत उन क्षेत्रों में खुलकर विदेशी कंपनियों को प्रवेश दे, जहाँ भारतीय कंपनियाँ अभी भी स्वदेशी दृष्टिकोण से मजबूत हैं।
टैरिफ लगाना आर्थिक दबाव बनाने का एक साधन है, किंतु यह दबाव कितना कारगर होगा, यह सवाल विचारणीय है। भारत ने बीते वर्षों में यह साबित किया है कि किसी भी वैश्विक दबाव के बावजूद वह अपने हितों से समझौता नहीं करेगा।
मोदी जी की इच्छा शक्ति और स्वदेशी दृष्टिकोण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “आत्मनिर्भर भारत” और “वोकल फॉर लोकल” का नारा देकर भारतीय उद्योग और कृषि को एक नई दिशा दी। यह केवल आर्थिक नीति नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक दृष्टिकोण भी है। आज भारतीय उपभोक्ता भी स्वदेशी उत्पादों को प्राथमिकता देने लगे हैं। यही परिवर्तन भारत की असली ताकत है।
अमेरिकी टैरिफ यदि किसी क्षेत्र को चोट पहुँचाता है तो भारत के पास दोहरी रणनीति अपनाने की क्षमता है –
- वैकल्पिक बाज़ारों की तलाश – भारत यूरोप, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों में अपने निर्यात को बढ़ा सकता है।
- घरेलू उत्पादन का सुदृढ़ीकरण – स्वदेशी उद्योगों को संरक्षण और प्रोत्साहन देकर भारत अपने आंतरिक बाज़ार को और मजबूत बना सकता है।
यही रणनीति अमेरिका के दबाव को अप्रभावी बना सकती है।
विदेशी राजनीति और भारत की भूमिका
विश्व राजनीति का स्वरूप इस समय बहुध्रुवीय (Multipolar) होता जा रहा है। चीन और रूस की सक्रियता, यूरोपीय संघ की नीतियाँ और एशियाई देशों का सहयोग भारत के लिए नए अवसर प्रस्तुत करते हैं। भारत यदि अमेरिकी टैरिफ के दबाव को झेलते हुए अन्य राष्ट्रों के साथ आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी बढ़ाता है, तो वह न केवल अपने निर्यात को सुरक्षित करेगा बल्कि वैश्विक शक्ति-संतुलन में निर्णायक भूमिका भी निभाएगा।
यहाँ प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीतिक कुशलता सामने आती है। वे न केवल पश्चिमी देशों से संबंधों को प्रगाढ़ कर रहे हैं, बल्कि अफ्रीका, खाड़ी देशों और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भी भारत की पहुँच को मजबूत कर रहे हैं। यही व्यापक दृष्टि भारत को हर प्रकार की विदेशी चुनौती से उबार सकती है।
भारत की शक्ति और विश्व की अपेक्षा
आज का भारत केवल एक बड़ा बाजार नहीं, बल्कि एक भरोसेमंद साझेदार है। कोविड-19 महामारी के समय भारत ने “वैक्सीन मैत्री” अभियान के जरिए दर्जनों देशों को जीवनरक्षक वैक्सीन उपलब्ध कराई। इस मानवीय पहल ने भारत की वैश्विक छवि को नया आयाम दिया।
अमेरिका जैसे महाशक्ति वाले देश भी यह समझते हैं कि भारत के बिना वैश्विक अर्थव्यवस्था और राजनीति की दिशा तय नहीं हो सकती। यही कारण है कि अमेरिकी टैरिफ जैसी चुनौतियाँ अस्थायी हैं, स्थायी नहीं।
निष्कर्ष : उभरता भारत और अडिग संकल्प
अमेरिकी टैरिफ भारत के लिए चुनौती अवश्य है, किंतु यह कोई नई बात नहीं। इतिहास गवाह है कि जब-जब किसी उभरते राष्ट्र ने विश्व व्यवस्था को चुनौती दी है, तब-तब पुरानी महाशक्तियों ने उसे रोकने की कोशिश की है।
भारत की विशेषता यह है कि वह संघर्ष करते हुए भी संवाद की राह अपनाता है। मोदी जी की इच्छा शक्ति, स्वदेशी दृष्टिकोण, और भारत की बढ़ती आर्थिक ताकत इस चुनौती को अवसर में बदल सकती है।
आज आवश्यकता इस बात की है कि भारत अपने उद्योग, किसानों और युवाओं को विश्वास दिलाए कि विदेशी टैरिफ हमें रोक नहीं सकते। यदि भारत आत्मनिर्भरता की राह पर और दृढ़ता से बढ़ता है तो अमेरिका सहित पूरा विश्व यह स्वीकार करेगा कि 21वीं सदी वास्तव में भारत की सदी है।
✍️ बालकिशन अग्रवाल, शिक्षाविद एवं समाजसेवी, स्वतंत्र विचारक
